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ऐसा कभी नहीं हुआ था... धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे। पर ऐसा कभी नहीं हुआ था। सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर हरिशंकर परसाई

यथार्थ का समन्वय दिखाई देता है। इनकी कहानियाँ भी घटना प्रधान और वर्णात्मक है।

के गद्य रूप कहानी में भी काफी बदलाव आ रहे हैं। वर्तमान की हिन्दी कहानी का उद्भव

कुत्ता जो विदेश चला गया : पंचतंत्र की कहानी

प्रमुख कहानियाँ हैं - चरणों की दासी, रोगी, परित्यक्ता, जारज, अनाश्रित, होली, धन का - अभिशाप, प्रतिव्रता या पिशाची, एकाकी, मैं,

विशिष्टता है। कहानी की भाषा, पात्र, घटना आदि में दिन प्रति दिन नये परिवर्तन आ रहे हैं। इस

विमला खाना परोस रही थी। कमल बैठा पत्र लिख रहा था। वह सोचता था कि जब इसे समाप्त कर लूँगा, तब उठूँगा। देर ही क्या है, कुछ भी तो और अधिक नहीं लिखना है। बस, यही दो-तीन, हाँ दो ही पंक्तियाँ और लिखने को हैं कि फिर मैं हूँ और भोजन। और विमला मन-ही-मन झुँझला भगवतीप्रसाद वाजपेयी

है। मुशी प्रेमचन्द जिस अवधि में कहानियाँ लिख रहे थे उसी अवधि में कई कहानीकारों

और मूल्यों को त्यागना तथा नवीन मूल्यों की खोज करना आधुनिकता है। आधुनिकता का यह

ताई, ‘रक्षावधन', 'माता का हृदय' कृतज्ञता आदि

पश्चात् नये युग में हिन्दी कहानी की दो प्रमुख शाखाएँ उभरकर आयी। इनमें एक शाखा

कहानियों में जहाँ मानवीय भावों की सक्ष्म व्यंजना हुई है। वहाँ आदर्श के नये रूप

चिट्ठी-डाकिए ने दरवाज़े पर दस्तक दी तो नन्हों सहुआइन ने दाल की बटली पर यों कलछी मारी जैसे सारा कसूर बटुली का ही है। हल्दी से रँगे हाथ में कलछी पकड़े वे रसोई से बाहर आई और ग़ुस्से के मारे जली-भुनी, दो का एक डग मारती ड्योढ़ी के पास पहुँची। “कौन है रे!” शिवप्रसाद सिंह

सारी दुनिया कि लालची नज़रों से छुपा एक छोटा पर संपन्न देश है, "डीपलैंड"। शिक्षा और तकनीकी में पृथ्वी पर बसे अन्य देशों से कहीं आगे है, "डीपलैंड"। प्रशांत महासागर के गर्भ में बसा यह देश अपनी तकनीक के ...

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